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Showing posts from November, 2019

Official Lyrics जय महाकाली, माँ काली Jai Mahakali Maakali Song by Maddy Puneet, Swati Sharma, Rhyming Vibes, Arrow Soundz 2022 Song

Jai Mahakali Maakali CREDITS ♪ Singer - Maddy Puneet | Swati Sharma ♪ Lyrics - Dr.Prashant Bhatt (Rhyming Vibes) ♪ Music by - Maddy Puneet ♪ Mix & Mastered by - Arrow Soundz ♪ Composed By- Maddy Puneet ♪ Audio Production - Puneet Academy Of Music ♪ Video - ArtistJaisa Special Thanks: Dr. Jagdish Prasad Semwal Official Lyrics   जय   काली .....  महाकाली शवारूढ़ाम् - महाभीमाम् - घोरदंष्ट् राम   हसन्मुखीम्।   चतुर्भुजांग - खड़गमुण्ड - वराभयकरा म्   शिवाम्।। मुण्डमालाधराम् - देवीम्   ललज्जिह् वाम् - दिगंबराम्।   एवम्   संचिंतयेत् - कालीं   श्मशाना लय - वासिनीम्।। जय   महाकाली .....  माँ   काली   जय   महाकाली .....  माँ   काली   एक   हाथ   में   कपाल   एक   में   खड़ग   विशाल   नेत्र   रक्त   से   भरे   केश   मेघ   से   घिरे    क्रोध   से   सना   हुआ   प्रचंड   वेग   नृत्य   का भुजा   सहस्त्र   मात   की   हरें   असंख्य   पातकी   जय   महाकाली .....  माँ   काली   जय   महाकाली .....  माँ   काली   ओम्   ऐं   ह्रीं   क़्लीं   चामुण्डाए   विच्चे ओम्   ऐं   ह्रीं   क़्लीं   चामुण्डाए   विच्चे

मन की देहरी का दीप (Hindi poem inspired by Sh. Harivansh Rai Bachchan)

अगर अमिताभ बच्चन हिंदी सिनेमा के महानायक हैं, तो श्री हरिवंश राय बच्चन हिंदी साहित्य के महाकवि हैं। हिंदी साहित्य के लिए उनका योगदान किसी परिचय का पात्र नहीं है। उनकी रचनायें बड़ी सरल भाषा में दिल को छूकर बहुत बड़ा सन्देश दे जाती हैं। बचपन में पढ़ी उनकी कविता " गीत मेरे देहरी के दीप सा बन " मेरे मन में घर कर, सदैव गूंजती रहती है। देहरी का दीप घर के भीतर और बाहर , दोनों ओर उजियला करता है। उसी तरह आज हम सब को अपने मन की देहरी पर एक दीप जलाने की ज़रूरत है जो पूरे संसार को प्यार , शांति और सौहार्द से उज्जवल कर सके। इसी विषय को उद्धोशित करने के प्रयास में निर्मित यह रचना समर्पित है श्री. हरिवंश राय बच्चन को उनके जन्मदिवस के उपलक्ष्य पर। आशा है अपना संदेश प्रसारित करने में यह सफल होगी। मन की देहरी का दीप मन में इक विकार सा है , चहुँदिश इक अन्धकार सा है, जन गण को आरोपित करता , हृदय में इक संचार सा है। मन के घने तिमिर को बस इक लौ दिखाना बाक़ी है, मेरे मन की देहरी