Jai Mahakali Maakali CREDITS ♪ Singer - Maddy Puneet | Swati Sharma ♪ Lyrics - Dr.Prashant Bhatt (Rhyming Vibes) ♪ Music by - Maddy Puneet ♪ Mix & Mastered by - Arrow Soundz ♪ Composed By- Maddy Puneet ♪ Audio Production - Puneet Academy Of Music ♪ Video - ArtistJaisa Special Thanks: Dr. Jagdish Prasad Semwal Official Lyrics जय काली ..... महाकाली शवारूढ़ाम् - महाभीमाम् - घोरदंष्ट् राम हसन्मुखीम्। चतुर्भुजांग - खड़गमुण्ड - वराभयकरा म् शिवाम्।। मुण्डमालाधराम् - देवीम् ललज्जिह् वाम् - दिगंबराम्। एवम् संचिंतयेत् - कालीं श्मशाना लय - वासिनीम्।। जय महाकाली ..... माँ काली जय महाकाली ..... माँ काली एक हाथ में कपाल एक में खड़ग विशाल नेत्र रक्त से भरे केश मेघ से घिरे क्रोध से सना हुआ प्रचंड वेग नृत्य का भु...
अगर अमिताभ बच्चन हिंदी सिनेमा के महानायक हैं, तो श्री हरिवंश राय बच्चन हिंदी साहित्य के महाकवि हैं। हिंदी साहित्य के लिए उनका योगदान किसी परिचय का पात्र नहीं है। उनकी रचनायें बड़ी सरल भाषा में दिल को छूकर बहुत बड़ा सन्देश दे जाती हैं। बचपन में पढ़ी उनकी कविता "गीत मेरे देहरी के दीप सा बन" मेरे मन में घर कर, सदैव गूंजती रहती है।
देहरी
का दीप घर के भीतर
और बाहर, दोनों ओर उजियला करता
है। उसी तरह आज हम सब
को अपने मन की देहरी
पर एक दीप जलाने
की ज़रूरत है जो पूरे
संसार को प्यार, शांति
और सौहार्द से उज्जवल कर
सके। इसी विषय को उद्धोशित करने
के प्रयास में निर्मित यह रचना समर्पित
है श्री. हरिवंश राय बच्चन को उनके जन्मदिवस
के उपलक्ष्य पर। आशा है अपना संदेश
प्रसारित करने में यह सफल होगी।
मन
की देहरी का दीप
मन
में इक विकार सा
है, चहुँदिश इक अन्धकार सा
है,
जन
गण को आरोपित करता,
हृदय में इक संचार सा
है।
मन
के घने तिमिर को बस इक
लौ दिखाना बाक़ी है,
मेरे
मन की देहरी पर
इक दीप जलाना बाक़ी है।
छल
और नैतिकता के मध्य में
छिड़ा हुआ इक डिंब सा
है,
प्रत्यक्ष
खड़ा वो दानव मेरे
हृदय का ही प्रतिबिम्ब
सा है।
भीतर
छुपे उस रावण पर
प्रतिघात लगाना बाक़ी है,
मेरे
मन की देहरी पर
इक दीप जलाना बाक़ी है।
निश्चित
हर इक मानव के,
मन में केवल तम ही नहीं,
किसी
कण में ईश सुशोभित हैं,
सम्मोहित किए है अधम कहीं।
मन-के निर्णय में
राम-सकल अभिदान बढ़ाना बाक़ी है,
मेरे
मन की देहरी पर
इक दीप जलाना बाक़ी है।
हर
राह सरल हो जीवन में,
यह किंचित सम्भव ही नहीं,
राह
सत्य की सदा कठिन,
मिले मिथ्य का पथ सहज
से ही।
नानकवाणी
को पथदर्शन सिरमौर बनाना बाक़ी है,
मेरे
मन की देहरी पर
इक दीप जलाना बाक़ी है।
मन
मेरा जो हो उज्ज्वल,
जग-में सम्भव अंधकार नहीं,
मेरे-मन से ही
हो आरंभित, उस उज्ज्वल जग
की किरण नयी।
अंत:
करण में दीप-पर्व का, ये सार समाना
बाक़ी है,
मेरे
मन की देहरी पर
इक दीप जलाना बाक़ी है।
-----डॉ.
प्रशांत भट्ट

Here is the video of this poem, posted by our partner YouTube channel KidsLounge...
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